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9) वो कुछ दिन अलीगढ में ( यादों के झरोके से )



शीर्षक = वो कुछ दिन अलीगढ़ में



एक बार फिर  यादों के झरोके से कुछ झलकियां आप सब के सामने लेकर आ रहा हूँ उम्मीद करता हूँ, आपको पसंद आएगी


ये बात है , आज से कुछ साल पहले की जब हमने  अपनी बारहवीं की परीक्षा अच्छे अंको से पास की, परीक्षाओं के दौरान हम अन्य कॉलेज में दाखिले के लिए दिए जाने वाली प्रवेश परीक्षाओं की तैयारियां भी कर रहे थे 


जिनमे दिल्ली यूनिवर्सिटी, अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया शामिल थी क्यूंकि ये हमारे शहर से ज्यादा दूर ना थी ,


बारहवीं की परीक्षा के बाद हमने इन सब ही कॉलेज के दाखिले के एग्जाम की तैयारी शुरू कर दी,और एक एक कर सबके दाखिले के इम्तिहान दे दिए  पर शायद हमारी किस्मत में कुछ और लिखा था, इसलिए हम वो परीक्षा पास ना कर सके 


और फिर अपने ही शहर के डिग्री कॉलेज से B.Sc में दाखिला ले लिया, लेकिन फिर भी हमने एक बार और कोशिश करना चाही, इस बार हमारे एक रिश्तेदार जो की सरकारी चिकित्सक है ने एक सलाह दी की तुम अलीगढ जाकर वहाँ किसी कोचिंग सेंटर से कोचिंग प्राप्त करो, ताकि तुम अच्छे अंक लाकर कॉलेज में दाखिला ले सको 


उनकी बात हमें समझ आ गयी , और हम जनवरी के महीने में जब काफ़ी ठण्ड पड़ रही थी , अपना बोरिया बिस्तर लेकर अलीगढ चले गए 


हमारा कोई रिश्तेदार वहाँ नही रहता है और रहता भी तो हम खुदसे वहाँ नही जाते कोई एक आद दिन की बात नही थी, कम से कम तीन महीने रुकना था वहाँ


इसलिए हमने एक कमरा किराये पर लिया जिसमे हमारे साथ एक लड़का और रहता था जो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी का ही छात्र था , बहुत पढ़ाकू लड़का था, हर समय  कॉलेज  उसके बाद कोचिंग और फिर उसके बाद लाइब्रेरी जा कर पढ़ाई करता था, रात को सिर्फ और सिर्फ सोने के लिए आता था 


जहाँ हम रहते थे उस जगह का नाम लोको कॉलोनी था  उसके नजदीक ही ट्रैन की पटरी थी, जहाँ से सुबह शाम धड धड़ करती हुयी ट्रैन गुज़रती थी


एक दो दिन तो हमें अच्छा नही लगा  लेकिन जब कोचिंग शुरू हो गयी तब अच्छा लगने लगा, हमें लग रहा था की सिर्फ हम ही घर छोड़ कर वहाँ एग्जाम की तैयारी करने आये है लेकिन वहाँ हमारी मुलाक़ात कश्मीरी, आसामी, बिहारी, नेपाली ( नेपाल के बच्चें भी वहाँ दाखिला ले सकते है  प्रवेश परीक्षा पास करके ) अन्य बच्चों से हुयी


किसी फॉरेन विद्यार्थी से हमारी मुलाक़ात नही हो सकी , बहुत ही बड़ी जगह में उस यूनिवर्सिटी को बनाया गया है , हम तो जब भी समय मिलता तो उसमे घूम आते और उसका मुयायना करते कभी सोचा नही था की उस लम्हें को लिखने का मौका मिलेगा


लोग भी हमें अच्छे लगे , जहाँ हम रहते थे  वो आंटी भी अच्छी थी  हसमुख मिजाज की थी, जब भी मिलती बाते करने लग जाती साथ ही साथ उनके घर में एक अमरुद का पेड़ भी था  जिसपर छोटे छोटे गोल गोल अमरुद लगे हुए थे, जिन्हे मौका मिलते ही हम सब बच्चें तोड़ कर खा लेते थे 



वहाँ रहकर पढ़ाई करने वाले बच्चों में से एक लड़का जो की बिहार से ताल्लुक रखते थे, मुझे उनका नाम ठीक से याद नही लेकिन वो एक अपंग लड़का था , लेकिन उनके हौसले को देख कर मुझे हमेशा मोटिवेशन मिलता था, उन्हे राजनीती का बहुत शोक था, पढ़ाई के साथ साथ वो खबरे भी सुनते रहते थे 


इसी के साथ शायद फेब्रुअरी का महीना था किसी ने बताया की अब यहाँ एक बहुत बड़ी नुमाइश लगने वाली है, जो की यहाँ की सबसे बड़ी नुमाइश कहलाती है , और जिसके लिए एक बहुत ही बड़ी जगह संरक्षित की गयी है


हमें तो बचपन से ही मेले, नुमाइश घूमने का शोक है  इसलिए हम तो इंतज़ार में थे  और जब नुमाइश लग गयी तब हम अपने उन्ही दोस्तों के साथ जा पहुचे जो हमारे साथ रहते थे 

सच में बहुत बड़ी जगह में वो नुमाइश लगी हुयी थी, बहुत सी दुकाने सब दुकाने जग मग हो रही थी, खाने पीने की इतनी दुकाने उसी के साथ रंग बिरंगे झूले  बहुत मज़ा आया 


उसी के साथ अलीगढ में मिलने वाले बरोले ( एक प्रकार की आलू की पकोड़ी जिसमे छोटे छोटे आलुओं को बिना काटे ही मसाला लगा कर तला जाता है और फिर हरी चटनी के साथ उसका लुत्फ़ उठाया जाता है  ) जो की मुझे बहुत पसंद थे , जो की शायद अलीगढ में हर गली नुक्कड़ पर आसानी से मिल जाते थे

जब भी कोचिंग से लोट कर आता तो उन्हे जरूर खाता 

पता ही नही चला की कब वो तीन महीने गुज़र गए, बहुत सारे दोस्त भी बने  उसी के साथ  अलीगढ में बनी एक झील पर भी हम गए  जिसका नाम मैं भूल सा रहा हूँ

वहाँ कुछ प्रवासी पंछी थे जिन्हे देखने का मौका मिला साथ ही साथ एक बहुत बड़ा आंवले का बाग था, शायद वो सरकारी था  उस पर बहुत सारे आँवले लगे हुए  थे  जिन्हे कोई तोड़ नही रहा था 


आखिर कार तीन महीने की तैयारी कर हम घर आ गए क्यूंकि हमारे  B. Sc की परीक्षा शुरू होने को थी , साथ ही साथ  दाखिले की तैयारी भी करते रहे लेकिन शायद इस बार भी हमारी किस्मत में वहाँ दाखिला ले पाना नही लिखा था और इस बार भी हम रह गए, थोड़ा दुख हुआ हॉस्टल में रहकर पढ़ने का हमारा सपना अधूरा रह गया था  लेकिन कोई बात नही ऐसी छोटी मोटी हार का तो सामना करना ही पड़ता है यही जीवन है 



ऐसे ही अन्य याद के साथ आपके समक्ष हाजिर हूँगा, जब तक के लिए अलविदा


यादों के झरोके से 

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5 Comments

Gunjan Kamal

11-Dec-2022 02:20 PM

खुबसूरत पलों में शुमार होते हैं जीवन के संघर्षपूर्ण दिन

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Muskan khan

09-Dec-2022 06:32 PM

Amazing

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Sachin dev

09-Dec-2022 06:10 PM

Well done

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